Wednesday, October 29, 2008

बड़ चली हूँ.....

एक ज़िन्दगी मिली है मुझे,

इतराती गुनगुनाती चहकती सी

खिलखिलाती फुदकती बड़ चली है,

राहों में अपने रंग बिखेरती हुई

इन्ही रंगों को समेट इन आंखों में,

बड़ चली हूँ इसके साथ मैं

मेरे मित्र,

तुम आज तो हो, कल शायद नहीं

याद आओगे, फिर शायद याद भी नहीं

कैसे वादा करूँ तुमसे, कल मेरे पास अब नहीं

ये ज़िन्दगी मेरे पास ज़रूर है,

पर इसको रोकने की टोकने की अब मेरी इच्छा नहीं

बड़ चली हूँ इसके संग अब मैं भी गुनगुनाती इतराती हुई

यह ज़िन्दगी किसी के लिए अब ठहरती नहीं ..........