Tuesday, October 3, 2017

तू आधार मेरा...

तू भूमि, मैं एक अदना सा कण
तू जल, मैं एक बूंद जीवन
तू ध्वनि, तो मैं एक भीनी सी धुन
तू रेशम, मैं कपास की कच्ची सी बुन

तू बन, मैं उसमें बेल कोमल
तू हवा, मैं उसका वेग चंचल
तू चन्दा, तो मैं बस एक छल
तू प्रकाश, तुझमें मेरा सब ओंझल

तू ज्वाला, मैं ज्योत झिलमिल
तू निडर, मैं कांपता सा दिल
तू आंचल, मैं कतरन की सिल
तू खरा सोना, मैं सबकी घुलमिल

तू आधार माँ...
तू आधार...
तेरे बिन मैं कुछ नहीं...
कुछ भी तो नहीं...

मैं कैसी हुं?

तुझसे टकरा के रोशनी,
इन आंखों को अब सिंचति नहीं...
इसलिए ये नम रेहतीं हैं माँ.

तेरी मुस्कुराहट के रंग,
मेरी हंसी में घुलते नहीं...
इसलिए ये फिंकी सी खिलती है माँ.

तेरे सीने से लिपट कर,
धड़कन को स्थिरता मिलती नहीं...
इसलिए ये डगमग सी चलती है माँ.

तेरे लबों से गिरकर मेरा नाम,
इन कानों को ढुंढता अब नहीं...
इसलिए ये सन्नाटों से भागते हैं माँ.

तेरे आन्चल के सायें में,
रात का डर छुपता नहीं...
इसलिए अन्धेरों से फ़ासला रखती हुं माँ.

ऐसी हुं माँ...
ऐसी हुं.
तेरे बिन.

एक वादा

फिर भी एक वादा कर बैठी हुं तुझसे,
जीना सीख लुंगी माँ...
अपने रगों के दोड़ते खून में,
तुझे महसूस कर लुंगी माँ...
मेरे चेहरे की झलक तेरी परछाई है,
प्रतिबिम्ब में अपने तुझे निहार लुंगी माँ...
मेरी आवाज़ की फनक भी तुझसे चूराई है,
लोरियों से खुद ही, खुद को बेहला लुंगी माँ...
तू मेरे होने की वजह जो है माँ,
अपने वज़ूद में तुझे ढूंढ लुंगी माँ...
तुझे ढूंढ लुंगी...

एक बात बताओ मां....

तू जब आकाश की ओर चली थी...
बादल गरजे थे...
बहुत वेग से हुआ था शोर...

क्या तेरे स्वागत के मृदंग थे?
तेरको पाने से क्या वो भी,
हुआ था भाव विभोर?

या तेरे मेरे बिछड़ने से,
उसके भी देश तूफान उठा था?
भीगे थे उसके भी दिल के छोर?

खुशी के फूल बरसाए थे?
या तेरे मेरे दिल की चीर,
भेद गई थी उसके भी हृदय के पोर?

आंखों कि चोरी....

तुमने जिनसे रूबरू कराया....
जिनको कोमल छत्र-छाया बताया....
हाथ जोड़कर जिनके आगे,
सर झुकाना सिखाया....
वो आज मुझसे,
और मैं उनसे,
आंखें चुराते हैं....

शायद,
वो मेरी आंखों की नमी का,
मेरी रुह की चींख का,
सामना नहीं कर पाते हैं....
या शायद वो अपने ही आंसुओं को छुपाते हैं....

शायद,
मैं अपने दिल के प्रश्नों को,
गुंजने से रोक नहीं  पाति हुं....
शिकायतों के दायरे में,
उन्हें खड़ा कर आती हुं....
या शायद,
उनपे इलज़ाम लगा,
अपनी ग्लानी मिटाती हुं....

शायद,
मुझे शिकायत है...उनके सुनने में, 
उन्हें शिकायत है...मेरे मांगने में,
चूक हो गई....
शायद,
मुझे डर है...मेरे मांगने में,
उन्हें डर है...उनके सुनने में,
चूक हो गई....

वो आज मुझसे,
और मैं उनसे,
आंखें चुराते हैं....
आंखें कभी मिल भी जाती हैं....
सन्नाटे में लिपटी हुई,
दोनों ही भीगी दास्तां पाते हैं....

आखिर मुझसे ज़्यादा,
बस उनसे ही प्यार किया था तुमने.... 
ना मैं उन्हें भुलने दुंगी,
ना वो यह भुल पाते हैं....
मेरी आन्खों के अश्रु,
उनकी आन्खों में छ्लक जाते हैं....
मेरे दिल के बेबस परिंदे,
उनके दिल को झंझोर आतें हैं....

मांगू क्या उनसे,
जो खुद ही लूट चला है आज.... 
प्यार मैने खोया है तो, 
तेरे जैसा प्यार नहीं उसके भी पास.... 
इसलिये शायद वो,
मेरी खमोशी में सकून पाते हैं....
वो मुझसे,
और मैं उनसे,
शायद इसलिए ही आंखें चुराते हैं....



Saturday, September 9, 2017

Rani Pink

When they had previously asked me ur favourite..
I had softly whispered from behind a curtain of grief..

"Rani...Rani pink"

They were able to procure a virulent violet instead.
And so we said our goodbyes to you clad in red.
That time the gift(?) was a pista green.
This time again it is green.
But it is embellished with your favourite flowers..

Rani colored tulips dancing in the winds....

Monday, September 4, 2017

Aaina

Mitr to the tum...
Ye tohfa kyun inayat kar gaye?
Dard nawazish kiya to tha...
Ye naqaad aaina kyun dar kar gaye?
Takmeel ki talab mein...
Kyun humein Aib-dar kar gaye?

Kya karun is aaine ka?
Lauta dun tumhare dar pe?
Magar tum the ya na sahi..
Mitr hum to huey ibadat se.
Vaise bhi Ye len den ki afra tafri..
Amavas si chipak jaati hai ruh pe.

Ye aaina chur kardenge hum...
Takmeel sa ek honsla inayat hai, usse.
Tasalli rakho, aankhein tumhari..
Na bharayengi iski chubh se.
Itna barik chur karenge ki...
Dhuan hi ho jayega wazood se.

Azaadi isse bhi..tumhe bhi...
Azaadi isse bhi...humein bhi...tum se.