तुझसे टकरा के रोशनी,
इन आंखों को अब सिंचति नहीं...
इसलिए ये नम रेहतीं हैं माँ.
तेरी मुस्कुराहट के रंग,
मेरी हंसी में घुलते नहीं...
इसलिए ये फिंकी सी खिलती है माँ.
तेरे सीने से लिपट कर,
धड़कन को स्थिरता मिलती नहीं...
इसलिए ये डगमग सी चलती है माँ.
तेरे लबों से गिरकर मेरा नाम,
इन कानों को ढुंढता अब नहीं...
इसलिए ये सन्नाटों से भागते हैं माँ.
तेरे आन्चल के सायें में,
रात का डर छुपता नहीं...
इसलिए अन्धेरों से फ़ासला रखती हुं माँ.
ऐसी हुं माँ...
ऐसी हुं.
तेरे बिन.
इन आंखों को अब सिंचति नहीं...
इसलिए ये नम रेहतीं हैं माँ.
तेरी मुस्कुराहट के रंग,
मेरी हंसी में घुलते नहीं...
इसलिए ये फिंकी सी खिलती है माँ.
तेरे सीने से लिपट कर,
धड़कन को स्थिरता मिलती नहीं...
इसलिए ये डगमग सी चलती है माँ.
तेरे लबों से गिरकर मेरा नाम,
इन कानों को ढुंढता अब नहीं...
इसलिए ये सन्नाटों से भागते हैं माँ.
तेरे आन्चल के सायें में,
रात का डर छुपता नहीं...
इसलिए अन्धेरों से फ़ासला रखती हुं माँ.
ऐसी हुं माँ...
ऐसी हुं.
तेरे बिन.
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