Tuesday, October 3, 2017

आंखों कि चोरी....

तुमने जिनसे रूबरू कराया....
जिनको कोमल छत्र-छाया बताया....
हाथ जोड़कर जिनके आगे,
सर झुकाना सिखाया....
वो आज मुझसे,
और मैं उनसे,
आंखें चुराते हैं....

शायद,
वो मेरी आंखों की नमी का,
मेरी रुह की चींख का,
सामना नहीं कर पाते हैं....
या शायद वो अपने ही आंसुओं को छुपाते हैं....

शायद,
मैं अपने दिल के प्रश्नों को,
गुंजने से रोक नहीं  पाति हुं....
शिकायतों के दायरे में,
उन्हें खड़ा कर आती हुं....
या शायद,
उनपे इलज़ाम लगा,
अपनी ग्लानी मिटाती हुं....

शायद,
मुझे शिकायत है...उनके सुनने में, 
उन्हें शिकायत है...मेरे मांगने में,
चूक हो गई....
शायद,
मुझे डर है...मेरे मांगने में,
उन्हें डर है...उनके सुनने में,
चूक हो गई....

वो आज मुझसे,
और मैं उनसे,
आंखें चुराते हैं....
आंखें कभी मिल भी जाती हैं....
सन्नाटे में लिपटी हुई,
दोनों ही भीगी दास्तां पाते हैं....

आखिर मुझसे ज़्यादा,
बस उनसे ही प्यार किया था तुमने.... 
ना मैं उन्हें भुलने दुंगी,
ना वो यह भुल पाते हैं....
मेरी आन्खों के अश्रु,
उनकी आन्खों में छ्लक जाते हैं....
मेरे दिल के बेबस परिंदे,
उनके दिल को झंझोर आतें हैं....

मांगू क्या उनसे,
जो खुद ही लूट चला है आज.... 
प्यार मैने खोया है तो, 
तेरे जैसा प्यार नहीं उसके भी पास.... 
इसलिये शायद वो,
मेरी खमोशी में सकून पाते हैं....
वो मुझसे,
और मैं उनसे,
शायद इसलिए ही आंखें चुराते हैं....



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