तारों की जिलमिल हुई
चन्दा की रोशनी में घुली
सपनों के समुंदर में
आशाओं की लेहरें बडीं
तूफानों में छुपा खुदको
पत्तों की सरसराहट बनी
खुशबुओं की तरह फैली समां में
फूलों की साजीश कोई
बंजर की बजरी बन उडी
घाघर में पानी सि छलक गई
सूरज की किरनों में लिपटे
देखो कहां चली मनचली
मन की तरंग की धुन बुने
नैनों का कजरा होटों की हंसी हुई
दिल के दरवाजे पे दस्तक करती
इन लेहरों में आशाऐं बडी बडी