and some beautiful words...
"सर उठाके मैंने तो कितनी ख्वाहिशें की थी
कितने ख़्वाब देखे थे, कितनी कोशिशें की थी
जब तू रुबरु आया , नज़रें ना मिला पाया
सर झुका के एक पल में , मैंने क्या नाहीं पाया"
कितने ख़्वाब देखे थे, कितनी कोशिशें की थी
जब तू रुबरु आया , नज़रें ना मिला पाया
सर झुका के एक पल में , मैंने क्या नाहीं पाया"
-Arziyan (Delhi 6)
No comments:
Post a Comment