एक भुला सा अधुरा सा वादा भू से है
ना जाने उसे ये भूलता क्यों नहीं
आसमान के पर परिंदे ये दिल हैं
ना जाने उड़ान भरता क्यों नहीं
तमन्नाओं का सागर छलकता इन आँखों से
डूबते तैरते किनारा मिलता क्यों नहीं
रूठे रूठे जो कल के पल हमसे हैं
फिसले अफसानों से संभलता कुछ नहीं
हाथों में रखी यादें अंगड़ाइयां तोड़ती हैं
मचलती धार जैसी इनकों अंशुमन मिलता क्यों नहीं
स्याही सि काली सि आँखें टकटकी लगाएं हैं
बरसों देंखें बरस को बरस बदलता क्यों नहीं
चुभती हुई सि जो कसक आँखों का रुख लेती है
लब्ज बनते बनते अर्क अपना उसे मिलता क्यों नहीं
समझना ना कि शिकायतों का कारवाँ है
साथ इतना गहरा है कि दर्द लगता ही नहीं
ना जाने उसे ये भूलता क्यों नहीं
आसमान के पर परिंदे ये दिल हैं
ना जाने उड़ान भरता क्यों नहीं
तमन्नाओं का सागर छलकता इन आँखों से
डूबते तैरते किनारा मिलता क्यों नहीं
रूठे रूठे जो कल के पल हमसे हैं
फिसले अफसानों से संभलता कुछ नहीं
हाथों में रखी यादें अंगड़ाइयां तोड़ती हैं
मचलती धार जैसी इनकों अंशुमन मिलता क्यों नहीं
स्याही सि काली सि आँखें टकटकी लगाएं हैं
बरसों देंखें बरस को बरस बदलता क्यों नहीं
चुभती हुई सि जो कसक आँखों का रुख लेती है
लब्ज बनते बनते अर्क अपना उसे मिलता क्यों नहीं
समझना ना कि शिकायतों का कारवाँ है
साथ इतना गहरा है कि दर्द लगता ही नहीं
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